Wednesday, May 27, 2009
जिंदगी....
जिंदगी फ़ख्त जिंदादिली होती तो कितना अच्छा था,
वरना बरसों पहले हम किसी दरख्त की शाख से क्यों लिपटे होते!
कुछ एक लम्हे हमे भी मिले होते सब-ए -हालात के लिए,
तो यूँ सिलसिलेवार इन यादों को न समेटते बैठते!
शुक्र है इस ज़िन्दगी ने खुद ही लिख दी ये कहानी,
वरना आज भी हम कोरे पन्नों को किसी गलियारे से बटोरते फिरते !!!!!!!!!
Sabab
Subscribe to:
Posts (Atom)