ख्वाबों का उतरना बाकी था,
कि आँखों में अब भी नमी बनी रही...
जिंदगी कुछ सूखे पत्तों सी....
गिरती साखों से लिपटी रही..!!
चुप रहे कुछ पल तो कुछ और मिल गए..
सिलसिले बने तो बनते रह गए....
वो घड़ी खामोश बैठे, तो सवाल वाजिफ था
हम भी चुप रहे तो वो दंग रह गए...
आस-पास ही कोई तस्वीर दिखाई देती है...
धुंध है सारे लम्हों में, पर तकदीर साथ बैठी है..
कोई अक्सर दरवाजों पर दस्तक दे जाता है ...
फिर क्यूँ घर के शोर में कोई आवाज नही आती है..
सवाल अब ये है जिंदगी तुमसे कि,
तुम्हारे बीत जाने की क्यूँ अब तक, कोई रात नही आती है !!!!
khoobsurat rachna!!!
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