फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है,
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है !
एक हादसा ही तो था छोटा सा उस रास्ते
पर
फिर से एक बेटे को माँ से बिछड़ते देखा
है,
कल ही तो इत्मिनान का बादल मंडराया था
उसकी छत पर,
आज फिर अचानक उसे फिर धूप से मरते देखा है !!!!
तमाशबीन लोग ही थे और अपने भी लोग ही
थे,
मरहम सा कोई नहीं, सब ज़ख्म ही कर रहे
थे
जिनसे उम्मीद थी नजदीकियों की
वो अब भी फासलों में थे
कुछ माँगा भी नहीं , ना कुछ लिया किसी
से
उसकी जरुरत में सबको सफाई से मुकरते देखा है !!
फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है !
ये जो चेहरे पे सूखी नमी थी उसके,
उसकी बेबसी में कही छुप सी गयी थी
कई घाव और भी थे अन्दर उसके
सबके लिए दौड़ने वाली आज रुक सी गयी थी
दो दिन से लबरेज था घर खुशियों से
उसका
आज ही मातम को सीढ़ियों से उतरते देखा
है!
फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है !
घर में अब कोई नयी ज़िंदगी
कैसे आएगी,
जो एक थी वो सबकी लेकर चली गयी,
कुछ रात के हंसी ठहाके ही
तो होते थे पहले
अब दिन-रात बस एक चीख़ देकर चली गयी,
बेपर्दा थे उसकी तरह दूसरों के भी
रौशनदान,
मौत का भी किस्सा बनाते उसने लोगो को देखा
है
फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है !
बिलखती देह की कोई परछाई भी नहीं,
ये कैसी पीड़ा है अनंत तक,
घर का कोना कोना भरा है वेदना से
ये कैसी दुविधा है अंत तक
बीती है उसकी इक रात अभी रिक्त से
भरी...
और भी जाएगी आगे शून्यता से सनी..
पहले भी घर के बाहर अँधेरा रहता था
उसके,
पर आज ही बिना आहट किसी को अन्दर जाते
देखा है
फिर एक सुबह लोगों को घरों से निकलते
देखा है
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है !