मुझको एक ही रहने दे…
न कर दो दीवारें,
वक़्त चला गर कहीं दूर तो
तेरा आशियाना ही मिट जायेगा,
कुछ जो था तेरे पास वो भी
वापस खुद में सिमट जायेगा।
वो बेचैनी क्यूँ कहता है
जो माथे पर कोई शिकन न छोडे
वो आलम क्यूँ रखता है
जो घर का कोई दरवाजा खुला न छोडे
मैं तेरा कोई करकट नहीं
जो सुबह कोई जमादार ले जाएगा
वक़्त चला गर कहीं दूर अब तो
तेरा आशियाना भी मिट जायेगा।
तेरे सपनो को ज़िंदगी की ज़रूरत क्या थी
तू तब भी खुली आँखों के ख्वाब देखता था
उठता था यकीन से
फिर भी तुझे यकीन न होता
दो आईने सामने रखकर सोचता
टुकड़ों और कतरों में सही
आज या कल में तेरा चेहरा बदल जायेगा ,
सर्वजगत सत्य समझ ले
तू जो आज है कल भी तू "वही" कहलायेगा
वक़्त चला गर कहीं दूर अब तो
तेरा आशियाना भी मिट जायेगा।
दो रास्ते थे तेरे पास अनंत तक
चलता रहा तू दोनों पर अंत तक
शिकायत करता रहा लहरों की
हर बार तू मझधार को छूता रहा
समझ न पायी ज़िंदगी तेरी ख़ुशी
कि तू कब किसे कैसे खुश कर पायेगा
वक़्त चला गर कहीं दूर तो
तेरा आशियाना ही मिट जायेगा।
रुक जा इबादत से आज की रात
कि इस दीवार का हर पत्थर भी तुझे ठुकराएगा।
No comments:
Post a Comment