कुछ कहना है .....(कविता संग्रह)
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025
पापा! क्या बेटा कहके बुलाओगे?
मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025
तेरे हालात का विजय पथ!
बुधवार, 18 सितंबर 2024
ज़िंदगी की रात–राहें
बुधवार, 22 नवंबर 2017
(फिर एक सुबह)

फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है, 
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है ! 
एक हादसा ही तो था छोटा सा उस रास्ते
पर 
फिर से एक बेटे को माँ से बिछड़ते देखा
है,
कल ही तो इत्मिनान का बादल मंडराया था
उसकी छत पर,
आज फिर अचानक उसे फिर धूप से मरते देखा है  !!!!
तमाशबीन लोग ही थे और अपने भी लोग ही
थे,
मरहम सा कोई नहीं, सब ज़ख्म ही कर रहे
थे 
जिनसे उम्मीद थी नजदीकियों की 
वो अब भी फासलों में थे 
कुछ माँगा भी नहीं , ना कुछ लिया किसी
से 
उसकी जरुरत में सबको सफाई से मुकरते देखा है !!
फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है 
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है ! 
ये जो चेहरे पे सूखी नमी थी उसके,
उसकी बेबसी में कही छुप सी गयी थी 
कई घाव और भी थे अन्दर उसके
सबके लिए दौड़ने वाली आज रुक सी गयी थी
दो दिन से लबरेज था घर खुशियों से
उसका 
आज ही मातम को सीढ़ियों से उतरते देखा
है! 
फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है 
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है ! 
घर में अब कोई नयी ज़िंदगी
कैसे आएगी,
जो एक थी वो सबकी लेकर चली गयी,
कुछ रात के हंसी ठहाके ही
तो होते थे पहले  
अब दिन-रात बस एक चीख़ देकर चली गयी,
बेपर्दा थे उसकी तरह दूसरों के भी
रौशनदान,
मौत का भी किस्सा बनाते उसने लोगो को देखा
है  
फिर एक सुबह लोगों को घरों से
निकलते देखा है 
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है ! 
बिलखती देह की कोई परछाई भी नहीं, 
ये कैसी पीड़ा है अनंत तक, 
घर का कोना कोना भरा है वेदना से
ये कैसी दुविधा है अंत तक 
बीती है उसकी इक रात अभी रिक्त से
भरी...
और भी जाएगी आगे शून्यता से सनी..
पहले भी घर के बाहर अँधेरा रहता था
उसके,
पर आज ही बिना आहट किसी को अन्दर जाते
देखा है 
फिर एक सुबह लोगों को घरों से निकलते
देखा है 
रात के धुंधले ख्वाबों को फिर से उमड़ते
देखा है ! 
शनिवार, 23 नवंबर 2013
दो दीवारें !!
रविवार, 15 जुलाई 2012
" जिद "
"
जिद "
  
  
किसी
रात की तरह फिर से आज 
चुपचाप
चाँद पर जाने की जिद की...
ना जाने
क्यों चाहा की सारे तारे जकड़ लाऊं 
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमां लांघ जाऊं !!!
 
[इस पंक्ति से क्षितिज़
के छोर तक जाने की की कल्पना देखिये]
एक
गरम हवा हर बार,  हथेली इस कदर छूती रही
नीचे
सिमटा दिखा सब कुछ ..ज़मीं हर पहर हिलती रही 
बादल
भी कई चेहरों से ढकने लगा मुझे कुछ यूँ देखकर,
आखिर
एक नया मुखौटा लग गया एक नयी दुनिया में जाने को...
कोई
पहचान ना पाए चेहरों से..हर चेहरा इतना बदल आऊं...
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!! 
 
बारिश
कैसे होती है सब पूछते थे मुझसे घर पर ...
आज
उन बूंदों को उनके घर से निकलते हुये देखा था मैंने...
रहता
था जहाँ, वहां प्यास में हर तलाश भी बेपता थी...
प्यासे
घरों की कितनी छतें बारिश में ढहती देखी थी मैंने...
उन
घरों का अँधेरा देख लगा कि चलो कुछ घर रोशन कर आऊं..
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!! 
[रिश्तो के मायने कैसे
है हर जगह इन चार लाइनों में देखिये]
कितने
खुश है लोग...शायद ख़ुशी जानते ही नही...
वो
(ज़मीं) दूर होकर भी अम्बर से खुश हुआ करती है....
यहाँ
कोई  "मै" नही कहता....कोई  "तुम" नही कहता....
वहां
तो हर दूरी भी एक  रिश्ता बना जाती  है...
कुछ
पल और दे दो...मै सबको एक रिश्ते में बाँध आऊं...
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!! 
 
[ये अगली पंक्ति
कल्पना के अंतिम चरण की है, ज़रा गौर करियेगा]
 
सोयी
रात ने  फिर आँख मली एक करवट लेकर
पानी
के छीटें डाले हैं अभी अभी किसी ने मुझ पर 
ताज़ी
ओस वो खुशबू मेरे पास आकर रुक गयी....
तैयार
हो रहा था चाय वाला चूल्हा जलने को ..
मैंने
सोचा इस नीद से इस तरह मै कैसे अभी जाग जाऊं...
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!!
"
जिद "
किसी
रात की तरह फिर से आज 
चुपचाप
चाँद पर जाने की जिद की...
ना जाने
क्यों चाहा की सारे तारे जकड़ लाऊं 
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमां लांघ जाऊं !!!
[इस पंक्ति से क्षितिज़
के छोर तक जाने की की कल्पना देखिये]
एक
गरम हवा हर बार,  हथेली इस कदर छूती रही
नीचे
सिमटा दिखा सब कुछ ..ज़मीं हर पहर हिलती रही 
बादल
भी कई चेहरों से ढकने लगा मुझे कुछ यूँ देखकर,
आखिर
एक नया मुखौटा लग गया एक नयी दुनिया में जाने को...
कोई
पहचान ना पाए चेहरों से..हर चेहरा इतना बदल आऊं...
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!! 
बारिश
कैसे होती है सब पूछते थे मुझसे घर पर ...
आज
उन बूंदों को उनके घर से निकलते हुये देखा था मैंने...
रहता
था जहाँ, वहां प्यास में हर तलाश भी बेपता थी...
प्यासे
घरों की कितनी छतें बारिश में ढहती देखी थी मैंने...
उन
घरों का अँधेरा देख लगा कि चलो कुछ घर रोशन कर आऊं..
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!! 
[रिश्तो के मायने कैसे
है हर जगह इन चार लाइनों में देखिये]
कितने
खुश है लोग...शायद ख़ुशी जानते ही नही...
वो
(ज़मीं) दूर होकर भी अम्बर से खुश हुआ करती है....
यहाँ
कोई  "मै" नही कहता....कोई  "तुम" नही कहता....
वहां
तो हर दूरी भी एक  रिश्ता बना जाती  है...
कुछ
पल और दे दो...मै सबको एक रिश्ते में बाँध आऊं...
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!! 
[ये अगली पंक्ति
कल्पना के अंतिम चरण की है, ज़रा गौर करियेगा]
सोयी
रात ने  फिर आँख मली एक करवट लेकर
पानी
के छीटें डाले हैं अभी अभी किसी ने मुझ पर 
ताज़ी
ओस वो खुशबू मेरे पास आकर रुक गयी....
तैयार
हो रहा था चाय वाला चूल्हा जलने को ..
मैंने
सोचा इस नीद से इस तरह मै कैसे अभी जाग जाऊं...
आज
बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!!

 




