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बुधवार, 27 मई 2009

जिंदगी....


जिंदगी फ़ख्त जिंदादिली होती तो कितना अच्छा था,
वरना बरसों पहले हम किसी दरख्त की शाख से क्यों लिपटे होते!
कुछ एक लम्हे हमे भी मिले होते सब-ए -हालात के लिए,
तो यूँ सिलसिलेवार इन यादों को न समेटते बैठते!
शुक्र है इस ज़िन्दगी ने खुद ही लिख दी ये कहानी,
वरना आज भी हम कोरे पन्नों को किसी गलियारे से बटोरते फिरते !!!!!!!!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्र है इस ज़िन्दगी ने खुद ही लिख दी ये कहानी,
    वरना आज भी हम कोरे पन्नों को किसी गलियारे से बटोरते फिरते

    सही कहा है.....जिंदगी अपने आप ही कहानी लिख देती है............

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  2. स्वागत है।

    भैया माना कि स्मार्ट हो और कविता भी अच्छी लिख लेते हो, लेकिन हमारी खातिर अपना फोटो थोड़ा छोटा कर दो ना ।

    अनुरोध यदि word verification रखा है तो हटा दें।

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  3. एक सुंदर छायाचित्र, लेआउट की बेहतर प्रस्तुति के साथ.

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  4. aapka swagat hai.....aapki kala ka bhi...
    wish you all the very best

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  5. हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं । अगर वर्ड वेरीफिकेशन को हटा लें तो टिप्पणी देने में सुविधा होगी आसान तरीका यहां है ।

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  6. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी

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  7. ज़िन्दगी का दिलचस्प फलसफ़ा लिख डाला..ब्लॉग़जगत मे आपका स्वागत है...!

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  8. Jindagi ke upper vaise aapne khoob likha hai Ajay lakin aapne apni panktiyon mein kafi urdu shabdo ka istemaal kiya, jisse paathko ko samaghne mein dikkat ho sakti hai... isliye meri aapse requset hai ki aap urdu ka thoda kam pryog karete hue hindi ka jada proyg kare jisse parne walo ko koi parshani na ho.. Aur voh aapki khoobsurat pankteyon ka luft utha sake...

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  9. Bahut he khoobsurat dhang se Zindagi ko pesh kiya gaya hai...Bhai wahh !!!!

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