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गुरुवार, 25 जून 2009

"बूढा"


टूटी डाल के तकाजे को आज लंगर हाथों में था,
घर के चूल्हे पर रखने को आज बोझा हाथों में था!
बुढापे की ऊहापोह से लड़कर थक चुका था वो,
पुरानी यादों का तिनका तिनका आज उसके हाथों में था!!!!!

वो दस्तक देती आगन में बिखरती किलकारियाँ
वो कोने पर देर तक पीक थूकते जुम्मन मियाँ,
आटे की रोटी, दूध का कटोरा भर कर पिया
अपने पैसों वाला कुर्ता पहनकर बूढा अब तक जिया!
अपना कहता किसको, रिश्तों की सीढियां उतर चुका था,
आंसू कब के ख़त्म हो गए, सफ़ेद खून आज उसकी रगों में था !


दरगाह के पीछे से जाती वो घर की तंग गली
वो खेतों में काम करते,पसीना पोछते अर्दली,
मुक़म्मल सी ज़िन्दगी के चार पहियों के सहारे,
पतझड़ में भी देखता वो गुजरी बसंत की बहारें !
मोटी थैली में डाले कुछ चिल्लरों की खनखनाहट
उसे लगती थी आज भी किसी के आने की आहट,
घर की जमीन, वो खेतों को बरबस ताकता रहता
वो हर साल, घर में रहकर धूप और बारिश सहता !
लड़ नहीं पाया सबसे , उसकी टूटी लाठी के सहारे
कब के राख बन चुके थे उसके सीने के अंगारे,
"जीवन-शैय्या " पर लेटा वो आज मौत की पनाहों में था
बांस के झुरमुट के नीचे तारे गिनता आज वो राहों में था !!!!!!!!!

12 टिप्‍पणियां:

  1. Mukarar Mukarar...........
    Saabji aapka jawab nahi ji.....
    mast hai ji.....

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  2. bhai gazab. aaj ek naye(mere liye) aur damdar kavi se milna ho gaya. din achchha raha aaj ka.

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  3. अपने पैसों वाला कुर्ता पहनकर बूढा अब तक जिया!
    अपना कहता किसको, रिश्तों की सीढियां उतर चुका था,
    आंसू कब के ख़त्म हो गए, सफ़ेद खून आज उसकी रगों में था !
    Very Good & Deep thinking...Very Touching & Sentimental ...

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  5. aaj tak suna hi tha.....ab padh bhi liya.
    aap bahut accha likhte hain.

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  6. its a very nice n realistic creation sir....congratulations.

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  7. arey ajay, mere aas paas itna qabil kavi hai mujhe nahi malum tha. lagey raho, achchha karo. my best wishes are with you. Congrates for this poem.

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