बेफिक्र है हवा भी....न दीवारों की रही कोई हसरत,
बारबा सर टकराकर जान आफत में डाली थी..
एक ख्वाब आखिरी सा बस टूटकर निकला है ..
शुरू से परतों में रही .. बेवजह उम्र अब तक ये खाली थी !!!
कुछ कांच की तरह थे फर्श में बिखरे साफ़ टुकड़े ...
पानी में पड़े थे कुछ उम्मीदों के बड़े तेज़ छीटे
राख ढेर थी पड़ी घर में...कुछ सुलगी सी थी ...
घर के बाहर ये जागी रात दूर तक झुकी सी थी ...
नही आया कोई लौटकर इस झरोखे से अन्दर ..
सोचा एक और लाश दरवाजे से आने वाली थी....
शुरू से परतों में रही, बेवजह उम्र अब तक ये खाली थी !!!
बातें थी कहाँ .. अक्सर तो ये ज़मी पर सो जाती थी ...
चलती लहरें बिना दस्तक मौन लौट जाती थी ..
पुराना एक किस्सा कहने का सबब लेकर..
चलता था तो.... रुकने की आदत सी हो जाती थी ..,
फिर हादसा,,,,,अब तो मुमकिन किस्मत बदलने वाली थी...
शुरू से परतों में रही , बेवजह उम्र अब तक ये खाली थी !!!
सुबह थी अर्श पर...चादरें कतारों में अब भी मैली सी थी ...
एक मेरी यादों से टूटकर जा गिरी थी उस पार...
नजर आता था हिस्सों में हालात का बिखर जाना...
एक पुरानी काली स्याही इस कदर चारों ओर फैली सी थी ..
मर्ज़ था गहरा, कुछ दिनों में सेहत बदलने वाली थी....
शुरू से परतों में रही , बेवजह उम्र अब तक ये खाली थी..
शुरू से परतों में रही , बेवजह उम्र अब तक ये खाली थी !!!
gr8..every line is superb really no words...
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