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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

तेरे हालात का विजय पथ!

 


क्या यही है तेरे हालात का विजय पथ?
घर तो आया है तू,
पर आज भी बेबस, आज भी लथपथ!
माथे पर शिकन की कई दिशाएँ, नयी–नयी,
घर–वापसी में किसी लाश के पीछे था न तू?
उसे पीछे छोड़, कौन सा कर्म युद्ध जीत लिया रे?
आख़िर कयामत का ऐसा कौन सा दरवाजा,
किसी और के कर्मों का, गलती से तूने तोड़ दिया रे?
तेरा आना-जाना हर रोज़ है,
और खुद से जंग तेरी हर दिन नई,
ज़िंदगी न के बराबर है, बिल्कुल श्मशान और बंजर।
शिकन है, तो बता क्यूं पीछे छोड़ आया?
एक देह, मृत कई?

क्या सच में इतना आगे बढ़ गया है तू?
या कोई ‘ख़ुद–ख़ुशी’ तलाशता,
कहीं और मुड़ गया है तू?
घुटन से भरा कैसा है रे ये तेरा पथ?
क्या यही है तेरे हालात का विजय पथ?
लानत है! घर तो आया है तू, पर आज भी बेबस, आज भी लथपथ।
"अ–जय"

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