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मंगलवार, 23 जून 2009

जिंदगी.........भाग -२ !!!!!!


ज़िन्दगी की तरह ज़िन्दगी मुस्कुराये तो क्या गम रहे, आंसुओं की जगह आँखें चुप सी रहें तो क्या गम रहे!!!!! सोचकर, सहमकर सपने संवर से जाएँ...... तो क्या गम रहे!!!!!!!!!! बात सुबह की थी, रात करवट बदलकर ख्वाब सोये से थे होके यूँ बेखबर, ज़ख्म ऐसे लगे, जैसे नीद से जगे सारे अरमां बिखरकर, आँखे रोने लगी जैसे किसकी कमी, फिर से लगने लगी, मिलकर जानकर कोई अपना लगे तो क्या गम रहे.........................!!! मुश्किलों से निकलकर रास्ते थे घने, साये जंगलों के दूर थी रौशनी पत्थर की गली, तारे गए पीछे बादलों के उम्र की हद है पैरों में अब तक नहीं पड़े इतने छाले, लड़ लिए हम दूरियों से कोई बीच नही अब फासलों के, बेवजह ठोकर, कोई दर्द लगे, जख्म दिखे तो क्या गम रहे!!!......................!

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