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शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

****** अपना समझकर.....*******


दूर क्यूँ वो चला आया , अपने हर रास्ते बदलकर
क्यूँ नया सफर मिल गया उसे, उसकी बाहों से लिपटकर,
क्यूँ जिंदगी तू सवाल करती है उससे यूँ रह-रहकर,,
जब साए से बंधी है आवाज उसकी, तुझसे यूँ हरपल सिमटकर !!


कर देती है तू फिर से तन्हा , जब याद उसको वो करता है,
फिर याद आने पर तू उसे, क्यूँ ऐसे मनाया करती है,,
जिंदगी तू कुछ भी कहे वो आज भी अनजान है,
क्यूँ रूठकर अगले ही पल तू उसको मनाया करती है ,,,,
पहलू में बैठे है तेरे कुछ रंग ऐसे फिर चेहरे बदलकर,
कह दे उनसे प्यार कर लें , ज़रा जाएँ फिर संभलकर !!!!


क्या
जाने तू ये जिंदगी , ख़ुद से चुराता पल वो इतने,
भवरों को फिर से सोता हुआ, अब तक देखा क्यूँ किसी ने,
कह देती हो आंखों से ऐसे, कि मैं कुछ समझ पाऊंगा ,
पर ये बता तू जिंदगी कि कल मैं उसका "कल" कैसे हों पाऊंगा....
आवाज आती है रातों में जब, उसकी एक आवाज सुनकर,
सर्द रात गुजर जाती है , उसको फिर से पलकों में सजाकर !!!!



प्यार
है उससे अब ये मैं , इन सुर्ख होठों से क्यूँ कहूँ ,
जब वो वजह हो मेरी , फिर ये वजह मैं क्यूँ कहूँ,,
सोचता हूँ बस यूँ ही, ग़र थोड़ा सहारा मिल जाता,
मैं इस सफर में अब कहीं दूर तक निकल जाता,,
कह देना उससे वो चुप रहे, मेरी भी बातें थोडी सुनकर,
मेरी सिसकियाँ तो ढल गई, उसको कबका अपना समझकर !!!

सोमवार, 29 जून 2009

" तुम "



सुबह की पहली ओस, सूरज की पहली किरण हो तुम,


दरिया में उठती हलचल , लहरों की पहली छुअन हो तुम


मेरे अस्तित्व का सच , सच का दर्पण हो तुम,


मेरे लिए इस जहाँ से बढ़कर, आदि-अनंत सब कुछ हो तुम !


तुम दर्द हो... तुम साया हो,,,,


तपती धूप में मेरी छाया हो तुम,


मै तृण , मेरा आकाश हो तुम


मेरे भविष्य का उज्जवल प्रकाश हो तुम,


तुम निर्मल, अचल, सजल और चंचल


मेरे सारे अहसासों का एक अहसास हो तुम.......


तुम चेतना, निर्विकार सुगम्य हो तुम,


मेरे दृष्टि द्वार का अधिकार सत्य हो तुम!!!!!!


मेरे हाथों की रेखाओं में तुम,


मेरे मन की दिशाओं में तुम


तुम सुबोध हो, सरल हो तुम,


मेरे जीवन का अर्ध्य कमल हो तुम,


तुम असीम-अनंत दीपक हो


तुम समीप-अंतर सूचक हो


तुम मेरी अभिलाषा, मेरे घर की गरिमा हो......क्योकि तुम, सिर्फ तुम ही मेरी "माँ" हो !!!!!!!

गुरुवार, 25 जून 2009

"बूढा"


टूटी डाल के तकाजे को आज लंगर हाथों में था,
घर के चूल्हे पर रखने को आज बोझा हाथों में था!
बुढापे की ऊहापोह से लड़कर थक चुका था वो,
पुरानी यादों का तिनका तिनका आज उसके हाथों में था!!!!!

वो दस्तक देती आगन में बिखरती किलकारियाँ
वो कोने पर देर तक पीक थूकते जुम्मन मियाँ,
आटे की रोटी, दूध का कटोरा भर कर पिया
अपने पैसों वाला कुर्ता पहनकर बूढा अब तक जिया!
अपना कहता किसको, रिश्तों की सीढियां उतर चुका था,
आंसू कब के ख़त्म हो गए, सफ़ेद खून आज उसकी रगों में था !


दरगाह के पीछे से जाती वो घर की तंग गली
वो खेतों में काम करते,पसीना पोछते अर्दली,
मुक़म्मल सी ज़िन्दगी के चार पहियों के सहारे,
पतझड़ में भी देखता वो गुजरी बसंत की बहारें !
मोटी थैली में डाले कुछ चिल्लरों की खनखनाहट
उसे लगती थी आज भी किसी के आने की आहट,
घर की जमीन, वो खेतों को बरबस ताकता रहता
वो हर साल, घर में रहकर धूप और बारिश सहता !
लड़ नहीं पाया सबसे , उसकी टूटी लाठी के सहारे
कब के राख बन चुके थे उसके सीने के अंगारे,
"जीवन-शैय्या " पर लेटा वो आज मौत की पनाहों में था
बांस के झुरमुट के नीचे तारे गिनता आज वो राहों में था !!!!!!!!!

मंगलवार, 23 जून 2009

जिंदगी.........भाग -२ !!!!!!


ज़िन्दगी की तरह ज़िन्दगी मुस्कुराये तो क्या गम रहे, आंसुओं की जगह आँखें चुप सी रहें तो क्या गम रहे!!!!! सोचकर, सहमकर सपने संवर से जाएँ...... तो क्या गम रहे!!!!!!!!!! बात सुबह की थी, रात करवट बदलकर ख्वाब सोये से थे होके यूँ बेखबर, ज़ख्म ऐसे लगे, जैसे नीद से जगे सारे अरमां बिखरकर, आँखे रोने लगी जैसे किसकी कमी, फिर से लगने लगी, मिलकर जानकर कोई अपना लगे तो क्या गम रहे.........................!!! मुश्किलों से निकलकर रास्ते थे घने, साये जंगलों के दूर थी रौशनी पत्थर की गली, तारे गए पीछे बादलों के उम्र की हद है पैरों में अब तक नहीं पड़े इतने छाले, लड़ लिए हम दूरियों से कोई बीच नही अब फासलों के, बेवजह ठोकर, कोई दर्द लगे, जख्म दिखे तो क्या गम रहे!!!......................!

बुधवार, 27 मई 2009

जिंदगी....


जिंदगी फ़ख्त जिंदादिली होती तो कितना अच्छा था,
वरना बरसों पहले हम किसी दरख्त की शाख से क्यों लिपटे होते!
कुछ एक लम्हे हमे भी मिले होते सब-ए -हालात के लिए,
तो यूँ सिलसिलेवार इन यादों को न समेटते बैठते!
शुक्र है इस ज़िन्दगी ने खुद ही लिख दी ये कहानी,
वरना आज भी हम कोरे पन्नों को किसी गलियारे से बटोरते फिरते !!!!!!!!!

Sabab


सबब था रेत के रवों से एक मकान बनाने का,
उम्मीद की लहरों से अपने तन को भिगाने का!
कैसे करूँ खुद को संजीदा सारे ख्वाब भुलाकर,
जब ख्वाब करके गया वादा उसे यहाँ लाने का!!!!