
जिंदगी फ़ख्त जिंदादिली होती तो कितना अच्छा था,
वरना बरसों पहले हम किसी दरख्त की शाख से क्यों लिपटे होते!
कुछ एक लम्हे हमे भी मिले होते सब-ए -हालात के लिए,
तो यूँ सिलसिलेवार इन यादों को न समेटते बैठते!
शुक्र है इस ज़िन्दगी ने खुद ही लिख दी ये कहानी,
वरना आज भी हम कोरे पन्नों को किसी गलियारे से बटोरते फिरते !!!!!!!!!