
सुबह की पहली ओस, सूरज की पहली किरण हो तुम,
दरिया में उठती हलचल , लहरों की पहली छुअन हो तुम
मेरे अस्तित्व का सच , सच का दर्पण हो तुम,
मेरे लिए इस जहाँ से बढ़कर, आदि-अनंत सब कुछ हो तुम !
तुम दर्द हो... तुम साया हो,,,,
तपती धूप में मेरी छाया हो तुम,
मै तृण , मेरा आकाश हो तुम
मेरे भविष्य का उज्जवल प्रकाश हो तुम,
तुम निर्मल, अचल, सजल और चंचल
मेरे सारे अहसासों का एक अहसास हो तुम.......
तुम चेतना, निर्विकार सुगम्य हो तुम,
मेरे दृष्टि द्वार का अधिकार सत्य हो तुम!!!!!!
मेरे हाथों की रेखाओं में तुम,
मेरे मन की दिशाओं में तुम
तुम सुबोध हो, सरल हो तुम,
मेरे जीवन का अर्ध्य कमल हो तुम,
तुम असीम-अनंत दीपक हो
तुम समीप-अंतर सूचक हो
तुम मेरी अभिलाषा, मेरे घर की गरिमा हो......क्योकि तुम, सिर्फ तुम ही मेरी "माँ" हो !!!!!!!