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Sunday, July 15, 2012

" जिद "


" जिद "

 

 

किसी रात की तरह फिर से आज

चुपचाप चाँद पर जाने की जिद की...

ना जाने क्यों चाहा की सारे तारे जकड़ लाऊं

आज बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमां लांघ जाऊं !!!

 

[इस पंक्ति से क्षितिज़ के छोर तक जाने की की कल्पना देखिये]

एक गरम हवा हर बारहथेली इस कदर छूती रही

नीचे सिमटा दिखा सब कुछ ..ज़मीं हर पहर हिलती रही

बादल भी कई चेहरों से ढकने लगा मुझे कुछ यूँ देखकर,

आखिर एक नया मुखौटा लग गया एक नयी दुनिया में जाने को...

कोई पहचान ना पाए चेहरों से..हर चेहरा इतना बदल आऊं...

आज बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!!

 

बारिश कैसे होती है सब पूछते थे मुझसे घर पर ...

आज उन बूंदों को उनके घर से निकलते हुये देखा था मैंने...

रहता था जहाँ, वहां प्यास में हर तलाश भी बेपता थी...

प्यासे घरों की कितनी छतें बारिश में ढहती देखी थी मैंने...

उन घरों का अँधेरा देख लगा कि चलो कुछ घर रोशन कर आऊं..

आज बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!!

[रिश्तो के मायने कैसे है हर जगह इन चार लाइनों में देखिये]

कितने खुश है लोग...शायद ख़ुशी जानते ही नही...

वो (ज़मीं) दूर होकर भी अम्बर से खुश हुआ करती है....

यहाँ कोई  "मै" नही कहता....कोई  "तुम" नही कहता....

वहां तो हर दूरी भी एक  रिश्ता बना जाती  है...

कुछ पल और दे दो...मै सबको एक रिश्ते में बाँध आऊं...

आज बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!!

 

[ये अगली पंक्ति कल्पना के अंतिम चरण की है, ज़रा गौर करियेगा]

 

सोयी रात ने  फिर आँख मली एक करवट लेकर

पानी के छीटें डाले हैं अभी अभी किसी ने मुझ पर

ताज़ी ओस वो खुशबू मेरे पास आकर रुक गयी....

तैयार हो रहा था चाय वाला चूल्हा जलने को ..

मैंने सोचा इस नीद से इस तरह मै कैसे अभी जाग जाऊं...

आज बस एक आखिरी सांस लूं और ये आसमा लांघ जाऊं...!!!

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