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Friday, November 18, 2011

"चाहूँ कभी"


चाहूँ कभी बचपन की वो यादें, पुरानी खरीद लू मै,
या जवानी की वो बहकती, चंचल रूमानी खरीद लू मै,
वो एहसास, वो दरियादिली की, तुमको लगे कभी प्यास तो,
जिस्म का कतरा कतरा लहू बेच, सब पानी खरीद लू मै
मिलता था सुकूं दिल को ,था वचपन मेँ गुमां जिसपर ,
वो खिलौने, गुड्डे-गुडिया साथ रानी खरीद लूँ मैँ ।
जो हसती थी मेरी अम्मा ,था बाबूजी का झूठा रुठना ,
वो झगड़े, वो कट्टिस, बेवक्त शैतानी खरीद लूँ मैँ । ।
काश इक बार फिर से गुजरें वो बसंत की बहारें,
तो पतझड़ की सारी जवानी खरीद लूं मैं !!!!
सोचता हूँ कभी क्षितिज के हर छोर पर जाकर
गर बचपन लौट आये, दादी नानी की सारी कहानी खरीद लू मै, !
तू रहता है सामने तो इबादत सी चलती है साथ,
तू न हो कभी परेशां, अल्लाह की सारी मेहरबानी खरीद लू मै !
आइना क्या बताता मुझे तेरे चेहरे की कभी कोई मासूमियत
तेरे लबों की उस नाजुकी के लिए, फूलों से नूरानी खरीद लू मै!!
चलना मुझे भी था हर कदम साथ, हमदम बनकर तुम्हारा
रास्ते रुके ना कभी मंजिलों से पहले , नदियों की रवानी खरीद लू मै !
इतने परिचय देकर संतोष कहाँ है "आशुतोष"
रिक्त बीती है कितनी रातें, इक रात कोई पुरानी खरीद लू मै,
कोई भला क्यूँ पहरा करता तुम्हे यूँ नज़रबंद करके
तुम सदा होशमंद रहो, दुनिया से सारी बदगुमानी खरीद लू मै !
ना रहा कोई सिलसिला तुझसे दूर जाने का कभी
मैंने भी करवटों से छुपकर तारे देखे हैं
नूर चेहरे का परदे में तेरा कब तक रहेगा अब...
तू कहे तो फिर से, एक जवानी खरीद लू मैं....!!

1 comment:

  1. मिलता था सुकूं दिल को ,था वचपन मेँ गुमां जिसपर ,
    वो खिलौने, गुड्डे-गुडिया साथ रानी खरीद लूँ मैँ ।
    जो हसती थी मेरी अम्मा ,था बाबूजी का झूठा रुठना ,
    वो झगड़े, वो कट्टिस, बेवक्त शैतानी खरीद लूँ मैँ । ।

    Bhaut Sunder....

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